Tuesday 14 April 2015

खोज :


सेवा धरम उठल धरती से, सेवा भाव जगावा ना ॥
नीमन नीमन लोगन के खोजा,नीमन बात सिखावा ना ॥

शीत युद्ध के लदल जमाना , दादागिरी के आइल बा ।
घन अनिहारे ज्योति किरन , जाने कहाँ भुलाइल बा ।
सफेदीयो पर से रंग उड़ल , नया रंग चढ़ावा ना ॥ नीमन ..............

कुले जलावल तोहार दीयना , जाने कवन बुझा गइलन ।
पक्ष – विपक्ष लड़े दिन–रात , जुत्तम-पैजार सीखा गइलन ॥
नैतिकता के दीप जली कब ,हाली जुगत लगावा ना ॥ नीमन ..........

मुफतखोरी बढ़े दिन रात , कोई बचल न एकरा से ।
कौनों लेवल भले लगल हौ , साँच छिपाईं केकरा से ।
सभई लगावे लगल मुखौटा , तोही पहचान करावा ना ॥ नीमन .....

कब सुधरी आदत इनहन के , कवन नयी हवा चली ।
कब दुनियाँ के होश मे लइबा, कहिया लगी सुबह भली ।
ओही दिनवा के इंतजार बा , बिजई संख बजावा ना ॥ नीमन ......



·           जयशंकर प्रसाद द्विवेदी