सेवा धरम उठल धरती से, सेवा भाव जगावा ना ॥
नीमन नीमन लोगन के खोजा,नीमन बात सिखावा ना ॥
शीत युद्ध के लदल जमाना , दादागिरी के आइल बा
।
घन अनिहारे ज्योति किरन , जाने कहाँ भुलाइल बा
।
सफेदीयो पर से रंग उड़ल , नया रंग चढ़ावा ना ॥
नीमन ..............
कुले जलावल तोहार दीयना , जाने कवन बुझा गइलन
।
पक्ष – विपक्ष लड़े दिन–रात , जुत्तम-पैजार सीखा गइलन
॥
नैतिकता के दीप जली कब ,हाली जुगत लगावा ना ॥
नीमन ..........
मुफतखोरी बढ़े दिन रात , कोई बचल न एकरा से ।
कौनों ‘लेवल’ भले लगल हौ , साँच छिपाईं केकरा से ।
सभई लगावे लगल मुखौटा , तोही पहचान करावा ना
॥ नीमन .....
कब सुधरी आदत इनहन के , कवन नयी हवा चली ।
कब दुनियाँ के होश मे लइबा, कहिया लगी सुबह भली
।
ओही दिनवा के इंतजार बा , बिजई संख बजावा ना ॥
नीमन ......
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी