Saturday 22 October 2016

सूत्रधार कौन ?

बिना बात मन के तार
बज उठे थे
असमय कोई सूत्रधार
मधुर धुन छेड़ गया था
उसकी इतनी स्निग्ध तान
जीने लगा न चाहकर भी
जल उठी अचानक एक लौ
गुनगुनाना भूलकर वो
ढूँढता फिर रहा है
अंधेरे मे ।

रोशनी अब फैलने लगी है
मंथर गति से
साधना इतनी सुहानी
अब मिली क्यों
मुग्ध चितवन आज
स्वयं पर
एक नया बचपन
जी रहा हूँ ।

मन भावुक हो चला है
आंखे बरसात को आतुर
अचानक मौसम मे परिवर्तन
आत्म अंश का बोध
कितनी अनोखी सोच
कब मिला , कब अपना हुआ वह
सोचता हूँ
हर रोज
बिना किसी अंतराल के   
आखिर वह सूत्रधार कौन ?


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

Saturday 1 October 2016

गांधी तेरे देश में

बड़े बड़े घड़ियाल पड़े हैं
धन से मालामाल बड़े है
लूट रहे हैं रोज देश को
नित्य नए गणवेश में || गाँधी तेरे ......

चोरी या पाकिटमारी है  
घोटालों की बीमारी है
बात बात में पैसा चाहिए
सरकारी निवेश में || गाँधी तेरे ...

कोई आता धमका जाता
नेताओं को दिल्ली भाता
निंदा फिर कड़ी ही करते
संसद वाले केस में || गाँधी तेरे ......

राहजनी और हिंसा होती
कड़वाहट के बिरवा बोती
ऊँच नीच भी छुआ छूत भी
धर्म जाति के रेस में || गांधी तेरे ......

भाषण और भड़ैती होती
दिन में रोज डकैती होती
इज्जत की ही बोली लगती
दिल्ली के परिवेश में || गांधी तेरे ......

हिन्दू मुस्लिम बात पुरानी  
पीकर घाट घाट का पानी
नियम बनाते सांसद आकर  
बापू तेरे भेष में || गाँधी तेरे ........



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी