कहने
की हिम्मत भी सुनने का जज्बा ।
सहा
जिल्लतों को शरारत सरीखे ॥
ना देखा बुरा ना की कोई कवायद ।
सहे हर सितम को तिजारत
सरीखे ॥
न कोई गिला इस जमाने से
हमको ।
जी ही लूँगा इसको नसाफत
सरीखे ॥
मधुर कुछ नहीं ,सब
तीखे ही तीखे ।
जिया गुरबतों को, जियारत सरीखे ॥
जिया गुरबतों को, जियारत सरीखे ॥
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जयशंकर प्रसाद
द्विवेदी