केनिओं
थूकब केनियों चाटब
चलब
कुटनियाँ चाल ।
हो
हमरा बनल रही भौकाल ॥
दिन
के रात, रात दिन बोलब
झूठ
के भोरही गठरी खोलब
लूटब
रहब निहाल ।
हो
हमरा बनल रही भौकाल ॥
जात
धरम के पाशा फेंकब
तकलीफ़े
मे सभका देखब
बजत
रही करताल
हो
हमरा बनल रही भौकाल ॥
कुरसी
के बस खेला खेलब
सभही
के आफत मे ठेलब
होखी
बाउर हाल
हो
हमरा बनल रही भौकाल ॥
· जयशंकर
प्रसाद द्विवेदी