Wednesday 18 April 2018

हो हमरा बनल रही भौकाल


केनिओं थूकब केनियों चाटब
चलब कुटनियाँ चाल ।
हो हमरा बनल रही भौकाल ॥

दिन के रात, रात दिन बोलब
झूठ के भोरही गठरी खोलब
लूटब रहब निहाल ।
हो हमरा बनल रही भौकाल ॥

जात धरम के पाशा फेंकब
तकलीफ़े मे सभका देखब
बजत रही करताल
हो हमरा बनल रही भौकाल ॥

कुरसी के बस खेला खेलब
सभही के आफत मे ठेलब
होखी बाउर हाल
हो हमरा बनल रही भौकाल ॥


·       जयशंकर प्रसाद द्विवेदी