Thursday 28 February 2019

उहै सुनाई होरी मे


बुआ बबुआ सभै क़हत हौ
पपुआ गाई  होरी में।
रटल रटावल घीसल पीटल
उहै सुनाई होरी में ॥

सैफई महोत्सव देख-देख के
डूबल लुटिया होरी में ।
हाथी बइठल  पंचर सइकिल
खड़ी खटिया होरी में ॥ 

भरल तिजोरी देंवका चाटे
पचरा गाईं  होरी में ॥
ई वी एम के अब  दिया देखाईं
लाज बचाईं  होरी में ॥

गूंगवा बोलल ढेर दिनन में
फूल चढ़ाईं  होरी में ।
मंदिर मंदिर माथा टेकस
पास कराई होरी में ।

उड़नखटोला फाटल कुरता
चौताल बजाईं  होरी में ।
जनेव डारि के कुरता पर
भौकाल बनाईं  होरी में ॥ 

भांग घोंट के मातल काशी
धुनी रमाईं  होरी में ।
साँझ अवध के सुबहे बनारस
ठेंग देखाई होरी में॥



ताक–झाँक के लदल जमाना
इहो  बताईं  होरी में ।
रोमियो समझ नवाबी नगरी
तहजीब सिखाई  होरी में ॥

पढ़ल उरुवा अनपढ़ मंत्री
इहो बताई  होरी में । 
धरम जाति के फइलल जहर
उहो मेटाईं  होरी में ।

लिख लोढ़ा पढ़ पाथर के हौ
मत बतलाईं  होरी में ॥
सभ केहु इहवाँ आपन बाटे
गरे लगाईं  होरी में ॥  


·       जयशंकर प्रसाद द्विवेदी





Monday 11 February 2019

भइल आज गठजोरिया हौ


दिन अछते जब लुगरी फाटल
तब-पुछी ओकरा के आँटल
गेस्टहाउस वाली गोरिया हौ।
भइल आज गठजोरिया हौ॥

कवन जमाना आय गइल
खरवासें गाँठ जोराय गइल
मंगल गाईं हथजोरिया हौ।
भइल आज गठजोरिया हौ॥

भनमतिया के कुनबा लेखा
जुटल बाटें सन तनि देखा
मठ नाही घर फोरिया हौ।
भइल आज गठजोरिया हौ॥

पकड़ी दम्मा दमभर खोखी
छत्तीस देखा तिरसठ होखी
मुँहझउसन के खोरिया हौ।
भइल आज गठजोरिया हौ॥

अनगढ़ दुवरे कोल-भकोल
छठिये  होखे लागल मोल
बरही बन्हाइल बोरिया हौ।
भइल आज गठजोरिया हौ॥

तू-तू, मैं-मैं, तोरब-फोरब
पहिले त घर-बार अगोरब  
भर मुँह गारी कै लोरिया हौ।
भइल आज गठजोरिया हौ॥

·       जयशंकर प्रसाद द्विवेदी