Saturday 26 December 2015

स्टेटस सिंबल

कवनों अंगुरी केहु के बांह
धांगब रोजे सागरी राह । 
परिभाषा त हमही गढली
ओहू के गरही मे ढाकब ॥
हमही थुकली हमही चाटब ॥

शरम हया कुल्हि बेंच सेंच के
खाली आपन राग चलाइब ।
समझे दुनिया चाहे कुछों
भर बजार मे नंगा नाचब ॥
हमही थुकली हमही चाटब ॥

इहे  बाटे स्टेटस सिंबल
बोलब कुछों लेबै दलबल ।
सभे लुटलस जी जी भर
हम काहे के पीछे हटब ॥
हमही थुकली हमही चाटब ॥

एक्के शब्द के डंका पीटब
कंधा दर कंधा के रीतब ।
दिन दुपहरिया गाइब भौचाल
मय कायनात गियाने बाटब ॥
हमही थुकली हमही चाटब ॥

परजा रोई रोअल नसीब बा
सुख के सेज हमरा करीब बा ।
झुनझुना बजावा सुबह शाम
अपनन के बस रेवड़ी बाटब ॥
हमही थुकली हमही चाटब ॥ 

तुनक मिजाजी केकरो साजे
हमरा ही बस डंका बाजे
कुल्हि जुगाड़ अब ठोक बजाई
हर दुअरा पर परचा साटब ॥
हमही थुकली हमही चाटब ॥

चिलवाइब दुनिया भर रोज
बइठल खाइब भर पेट भोज
सभकर छीनब दाना पानी
कुल्हि मलाई हमही काटब ॥
हमही थुकली हमही चाटब ॥




·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी


Thursday 24 December 2015

जनि करिहा

बड़ी मेहनत से बनेला ई शान बाबू ।
जनि करिहा इजतिया जिआन बाबू ॥

कतहू न मिलिहन अइसन देश आ समाज हो
नहीं पईबा कतहू अइसन मनई खुसमिजाज हो

इहवें होला संस्कारन के विहान बाबू ।
जनि करिहा इजतिया जिआन बाबू ॥

ज्ञान अ विज्ञान के जवान इहे देश हो
दुनिया मे सबसे महान इहे देश हो

होला इहवें से विकसित अरमान बाबू ।
जनि करिहा इजतिया जिआन बाबू ॥

हर धरम – करम फुले अ फले इहवाँ
सनेहिया क गगरी मिलेला ढेर इहवाँ

एही से बेसी न मिलिहें सम्मान बाबू ।
जनि करिहा इजतिया जिआन बाबू ॥

एही के सराहा खाली एकरे के सँवारा हो
बाउर खियाल नाही केकरो के गंवारा हो

करिहा देशवा नमन भूली अभिमान बाबू ॥
जनि करिहा इजतिया जिआन बाबू ॥




·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

Sunday 13 December 2015

तू त रहबा यार


करिया उज्जर कूल्ही कईला
कालधन के अजगर भइला
तू का रहबा यार , तीहाड़ों खाली हौ
जईसन कईला व्यापार जाए के हाली हौ
सारा माल डकार गइला , तू का कहबा यार ।
अबकी त सरकार गइल , तू त  रहबा यार ।।

जर जमीन जोरू मे फंसला
खाली चीलम पी के खंसला
तू अब सहबा यार , स्वामी जी कै नजर पड़ल हौ
हचक के लिहला अहार ,जनतो के नजर गड़ल हौ
जनता के मूरख बनवला, अब का चरबा यार ।
अबकी त सरकार गइल , तू त  रहबा यार ।।

चढ़ा के तेवरी पन्ने फड़ला
दुनिया के अखियों मे चढ़ला
मट्ठा महबा यार , कोरट भी पीछे पड़ल हौ
अब के डाली हार , माथा पर जब दोष मढ़ल हौ 
न्यायालय के समने अब सब कुछ गहबा यार।
अबकी त सरकार गइल , तू त  रहबा यार ।।

मरघट के अब सपनों देखबा
चमचन के संग अपनों देखबा
तू त डहबा यार , जनतों अब सवाली हौ
बहुत भइल ब्यभिचार,धोवे के अब थाली हौ
पार्टियो के जागीर बनवला,अब का चहबा यार ।
अबकी त सरकार गइल , तू त  रहबा यार ।।




·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

Monday 7 December 2015

"कुछों को लगता है "

कुछों को लगता है
मै शब्द गढ़ता हूँ
अभियंत्रण का
पाठ पढ़ता हूँ
बड़ी ही बेदिली से
संवाद करता हूँ ।

कुछों को लगता है
राजनीति जीता हूँ
वक्त बेवक्त ही सही
अपमान पीता हूँ
अनजाने मे समझ बैठा
किसी उदघाटन का फीता हूँ ।

कुछों को लगता है
व्यापार करता हूँ
अकथ्य ही सही
व्यवहार करता हूँ
नित नई वेदना का
अंबार भरता हूँ ।

कुछों को लगता है
बस विहार करता हूँ
अन्यथा ही दर – बदर
मंत्रोचार करता हूँ
आज से ही अग्र युग का
आधार धरता हूँ ।
  
कुछों को लगता है
उन्माद देता हूँ
अवसाद हर घड़ी पीकर
आह्लाद देता हूँ
तिमिर मे ऊँघते पथ पर
दीप संचार देता हूँ ।

कुछों को लगता है
बस बातें बनाता हूँ
समय के साथ चलकर
उनके खाते बताता हूँ
दिल से मूल्यांकन तो करो
बहुतों को न भाता हूँ ।

कुछों को लगता है
सब कुछ जुमलाबाजी है
समय के साथ चलना भी
क्या जालसाजी है ?
रुको जरा , सोचकर देखो
सच मे कौन कामकाजी है ?

कुछों को लगता है
अनदेखी होती है
समस्याएँ तो जस की तस
हमारी उम्मीद खोती है
सिर उठाकर तो देखो
विश्व भाल पर चमकता मोती है ।



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

Saturday 5 December 2015

बंदरबाँट


कुछ तीतर को
कुछ बटेर को
बाकी मेरा अहम खा गया ।

कुछ बंदो को
कुछ चंदों को
बाकी पर कुछ रहम आ गया ।

कुछ तोड़ फोड़
कुछ कहासुनी
बाकी पर वाक आउट छा गया ।

कुछ आरक्षण
कुछ संरक्षण
बाकी पर स्टे आ गया ।

कुछ झूठों को
कुछ रूठों को
बाकी तो मीडिया पा गया ।

कुछ लूट को
कुछ छूट को
बाकी को परदेश भा गया ।

कुछ सोने को
कुछ रोने को
बाकी को कुछ याद आ गया ।




·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

राजनीति के रोटी


बात इसन गढ़ाइल, न सोहाईल ए बाबा ।

बात सोगहग रहल , ई नईखे पता ।
घटना काहें भइल , बा केकर खता ।

बेमतलब मे मनई पिसाइल, ए बाबा ।

धरम - जात - मजहब क खाका बुनल
बिन प्रयोजन, बिना बात, आका चुनल

नीमन सनेहिया क डोर कटाइल ए बाबा ।

मुहजोरी के फेरु बवंडर उठल ।
बउरपन के कूल्ही रेकड़ टुटल ।

सँवारे क मंतर कुल भुलाइल, ए बाबा ।

केहु पचरा कहल केहु खाली सुनल ।
केहु झनकल , पटकल न केहु गुनल ।

उहवाँ केहु न आपन भेंटाइल ए बाबा ॥

सच्चाई के उहाँ महटियावल गइल ।
कड़ुवाहट के खाली बढ़ावल गइल  ।

निरा राजनीति के रोटी सेंकाइल ए बाबा ॥



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी