Friday 19 August 2016

कब्रिस्तान के बगल वाली लड़की

कब्रिस्तान के बगल वाली लड़की
चुलबुली सी
प्यारी सी
खनकती हँसी के संग
इधर - उधर
तितलियों सी मंडराती
सबको हंसाती , हंसती
किलोलें भरती हंसिनी सी .

वहां उसका होना
रोज एक नयी  कहानी
की भूमिका गढ़ जाता है
दे जाता है कथानक
किसी उपन्यासकार को
भावभूमि किसी कवि को.

वो लड़की किसी दिन
जब होती है उदास
रुक जाता पत्तियों का
हिलना – डुलना
पक्षियों का कलरव
लहरों का तरंगायन
पास वाले तालाब में भी .

कभी जब ओ लड़की रोती
सुबह सारी पगडंडी
भींगी भींगी मिलती
कब्रिस्तान में मिलता
गहराया  सन्नाटा
अनचाहा , अनायास

सभी मानते थे उसको अपना
वो भी ऐसे लगता था
कि किसी की बेटी है
किसी  की बहन है
और किसी की प्रेयसी
प्यार और मनुहार
उसके गहने जो हैं .

जब बहुत दिनों से
दिखी नहीं वह
कब्रिस्तान के बगल वाली लड़की
माथे पर सिलवटें
आ गयीं
आँखे भींग गयी
अपनों की भी
उसके अपनों की भी
बड़ी प्यारी थी जो .



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

Sunday 7 August 2016

हे ! नाग देवता पालागी !




हे ! नाग देवता पालागी !
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आस्तीन में पलिहा  बढ़िहs   
मनही मन परिभाषा गढ़िहs    
कुछो जमइहा कबों उखरिहा 
गारी  सीकमभर  उचारिहs  
हे ! नाग देवता पालागी !

हरदम  तोसे नेह  देवता
बसिहा  एही  गेह  देवता
नीको नेवर बुझिया भलहीं
डसिहा  एही  देह  देवता
       हे ! नाग देवता पालागी !

केकर मितई  कइसे जानब
दुसमन के कइसे पहिचानब   
बिजुरी  के  छूवब जे कबहूँ
तोसे बेसी  फन हम तानब
       हे ! नाग देवता पालागी !

छोछर कुल अभिमान देवता
हेराइल   सनमान   देवता
अकडू से  उकडूं  तू भइलs
अइसन तू  भगमान  देवता  
       हे ! नाग देवता पालागी !



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

आन्हर घुमची

आन्हर घुमची
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घेंटा मिमोरत
तोड़त - जोड़त
आपन –आपन गावन
अपने अभिनन्दन
समझवनी के बेसुरा सुर
बिना साज के
संगीत साधना .

झाड़ झंखाड़ से भरल
उबड़ खाबड़ बंजर जमीन
ओकर करेजा फारत
फेरु निकसत
कटइली झाड़
लरछे-लरछे लटकल पाकल
लाल टहक घुमची
अपने गुमाने आन्हर
दगहिल घुमची .

देखलो पर
अनदेखी करत
अनासे शान बघारत
बरियारी आँख देखावत
अनेरे तिकवत
बिखियायिल मुसुकी मारत
औंधे मुँह
धूरी में सउनाइल धुमची


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी