बाति त जवन बा तवन बा
बाति त इहे बा
जवन हम लिखेनी भा छापेनी।
बाचल-खुचल के कुछो बूझीं
बलुक ओकरो से कुछ बेसी बूझीं
हमरे दीहलका गियान सगरों बघारेले
हम चिघ्घारिले त उहो चिघ्घारेले।
ओइसे जहवाँ तक राउर नजर जाई
सब अपने बा
दोसरा के सपने नु बा
रहो ?
का फरक ....?
अइसन कुल्हि ढेर देखले सुनले बानी
लोग चिचिआई,छिछिआई
फेरु चुपा जाई
फेर त हमरे नु कहाई
पगड़िया त हमरे माथे नु बन्हाई ?
फलाने के चीजु ढेकाने अपने नाँव से छापें
भा गावें
चाहे फलाने के नावों ना लिखें
का फरक.....?
अब फलाने त बिरोध करे ना नु अइहें
बाकि ई बिरोधवा
सभ गलती करे वालन के
नु होखे के चाही
बिरोध चीन्ह चीन्ह के ना नु होखे के चाही
का फरक ?
भक्क ....!
इहाँ त गिरोह के बाति नु बा।
गिरोह
मने इहों गिरोह बा का ?
बा, ढेर गिरोह बा
जाति धरम से लेके
जवार जवार तक के
सभे के परिभाषा
समय समय पर बदलतो रहेले।
अरे वाह
चीने त ढेर शबद
अपने नावें रजिस्टरी करा लेले बाड़ें
मने चीने से पूछीं फेरु नाँव धरीं
ना त चीने उलटी करे लगिहें
उनुका पर-पलिवर का लो बेमार हो जाई
मिरगी के दउरा परे लागी
का फरक.... ?
लोग मनते नइखे ।
मने गलती त सुधरहीं
के नु चाही
सभे के सुधरे के चाही
रउवा कब सुधरब भा सुधारब
का फरक ...?
न हम सुधरब ना सुधारब
हम कोतवाल नु बानी।
· जयशंकर प्रसाद द्विवेदी