Thursday 5 May 2016

अब्बो ले सुपवा बोलेला


ताल तलहटी, गाँव के रहटी
कब फूटल किस्मत खोलेला
अब्बो ले सुपवा बोलेला |

दिन में खैनी साँझ के हुक्का
भोरहीं आइल साह के रुक्का
खेती में ना भयल कुछहु
अन्दाता फुक्के का फुक्का 
बिगरल माथा डोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |

बाढ़ बहवलस गाँवे  गाँव
पहरी पर अब बनल ठांव
मदत लीहने शहरी  बाबू
अब कइसे मोर पड़ी पाँव 
फंसरी में , मुड़ी तोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |

नन्हकी आपन भइल सयान
कब ले राखब ओकर ध्यान  
धावत धुपत घिसल  पनही
बेटहा  के बा  ढेर  पयान
हिम्मत के थुन्ही डोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |

बंसखट भइल दुअरे सपना
बइठे वाला ना केहू अपना
नेह छोह के किस्मत फूटल
उधार पइंच भइल कलपना
मन , भर गगरी विष घोलेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |

हम बानी लइकी के बाप
सोचत छाती लोटत सांप
कइसे लागी हाँथे हरदी
सोचत बेरी गइली काँप
बिन बेटी घर ना सोहेला | अब्बो ले सुपवा बोलेला |



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी