Wednesday 6 May 2015

ज़िंदगी तेरे कितने रंग


असमंजस ,  असमय पीड़ा का
फिसल रही मुस्कान, क्रीड़ा का
आँख उनींदी , तन मे अकड़न
सच को कैसे मै जताऊँ ॥
ऐ ज़िंदगी तेरे कितने रंग गिनाऊँ ॥

हिल – मिल  , सारे तथ्य चुराकर
झूठ को सच और सच झूठ बनाकर
प्रथम प्रविष्ठि , पूर्ण सशंकित
पीठ पे कितने खंजर खाऊँ ॥
ऐ ज़िंदगी तेरे कितने रंग गिनाऊँ ॥

बेवजह  संघर्ष , चाल निरापद
निगमित हो कुंठित हुआ कद
पर पीड़ा से सुख का अनुभव
किसको है , मै क्या बताऊँ॥
ऐ ज़िंदगी तेरे कितने रंग गिनाऊँ ॥

इठलाना क्या , इतराना क्या
अनजाना पथ , पथिक पराया
मेरी भ्रांति , या नासमझी
इस मन को कैसे समझाऊँ ॥
ऐ ज़िंदगी तेरे कितने रंग गिनाऊँ ॥

हर पल उलझन, नया उलहना
शंकित धड़कन, नई उपासना
मंदिर मस्जिद , योगी तांत्रिक
और कहाँ अर्जी लिखवाऊँ ॥
ऐ ज़िंदगी तेरे कितने रंग गिनाऊँ ॥

पीकर ज्वाला , खा अंगारे
तूफानो को लगा किनारे
अनुराग मे सिंहनाद यह
बन भैरव अब हाथ उठाऊँ ॥
ऐ ज़िंदगी तेरे कितने रंग गिनाऊँ ॥


·        जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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