मौका है , राजघाट हो आयें
आओ मिल गणतन्त्र
मनाएँ ।
वर्ष का पहला
राष्ट्र दिवस है
चलो फिर
कहीं तिरंगा फहराएँ
।
फिर तो बस
रोज घोटाले हैं
मन से
रीते दिल के काले हैं ।
नहीं बची शेष कोई
आशा है
जीवन उत्सर्ग तमाशा
है ।
भाषा का मानो भान
नहीं
बीरों के प्रति
सम्मान नहीं ।
हम इन्हे विधाता
माने बैठे
चलो ऐसों के कान
उमेठें ।
शायद गणतन्त्र समझ
जाएँ
कलुष तनिक ना मन मे
लाएँ ।
आओ मिल गणतन्त्र
मनाएँ ॥
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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