बागड़ बिल्ला नेता
बनिहे
करिया अक्षर वेद
बखानिहे
केहु के कब्जावल माल पर
मार पालथी शान
बघरीहे ।
कुरसी से जब पेट भरल ना
खइलस
चारा सानी मे ।
गइल
भइसिया पानी मे ॥
सगरी मचईहे हाहाकार
करीहे कुल उलटा ब्यापार
मरन अपहरन रहजनी पर
धारिहे आपन एकाधिकार ।
जनता
तभियो मन परल ना
डलिहे डेरवो रजधानी मे ।
गइल भइसिया पानी मे ॥
नीमन मनई घर छोड़ परइहे
इनकर पीछे
उ उहवों जईहे
लूट खसोट भा हेरा फेरी
कवनों खेला न कबों भुलईहे ।
इनका
बुझला अतनों सरल ना
रेकड़ तुरीहे बेईमानी मे ।
गइल भइसिया पानी मे ॥
कुरसी खाति कुछुवों बोलल
बिन जोगाड़ के धंधा खोलल
जनता के मरजाद का होला
कुकुर नीयन केनियों डोलल ।
जबले
उनकर जेब भरल ना
ओरहन गइल कहानी मे ।
गइल भइसिया पानी मे ॥
पढ़ लिख के अब बस्ता ढोवल
मउज करत बा भर दिन सोवल
करम के हाल बा लोलक लइया
आन्हर लग्गे अब बइठल रोवल ।
अतना
देखलो पर भी मरल ना
कुल बोरलस उ जवानी मे ।
गइल भइसिया पानी मे ॥
कतों घास के रोटी आउर कतहु भूखे पेट
कबों कबों त पनियों से नाही होला भेंट
पीढ़ी दर पीढ़ी बस करजे देहलें
तबों घरे पर नाही चढ़ल फ़रेठ ।
अबो
ले डरवार बनल ना
भइल छेद ओरवानी मे ।
गइल भइसिया पानी मे ॥
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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