Thursday 7 April 2016

मालिक

सुनला से अब पक्कल कान
केतना गाल बजबा मालिक ।
सगरी दुनिया घूम तू अला
अन्तरिक्ष मे जइबा मालिक ॥  

कालाधन के भटराग अलपला
कुछ ला के देखवता मालिक ।
गइल बीत दिन लफ्फाजी के
कारज करम करवता मालिक ॥

कमजोरन के नोकरी देता  
जरल भाग जगवता मालिक ।
दिमिन के घर जलत चूल्हा
भुखमरियो त भगवता मालिक ॥

ओहिजो चरचा खुबही कइला
बोलल कुछो निभवता मालिक ।
ममिलो बहुत पड़ल बा इहवों
एक्कों त सुलझवता मालिक ॥  

फिकरा कस कस खूब फेकरला  
हिया क दुख मेटवता मालिक ।
जब नीमन होइत करनी धरनी
सबके ही मन भवता मालिक ॥  



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

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