सुनला से अब पक्कल कान
केतना गाल बजइबा मालिक ।
सगरी दुनिया घूम तू अइला
अन्तरिक्ष मे जइबा मालिक ॥
कालाधन के भटराग अलपला
कुछ ला के देखवता मालिक ।
गइल बीत दिन लफ्फाजी के
कारज करम करवता मालिक ॥
कमजोरन
के त नोकरी देता
उजरल भाग जगवता मालिक ।
अदिमिन के घर जलत चूल्हा
भुखमरियो त भगवता मालिक ॥
ओहिजो
चरचा खुबही कइला
बोलल
कुछो निभवता मालिक ।
ममिलो
बहुत पड़ल बा इहवों
एक्कों
त सुलझवता मालिक ॥
फिकरा
कस कस खूब फेकरला
हिया
क दुख मेटवता मालिक ।
जब
नीमन होइत करनी धरनी
सबके
ही मन भवता मालिक ॥
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
No comments:
Post a Comment