Sunday 6 March 2016

शौक का सगुन

रौंद रहे हैं हर दिन
समय और जगह से
बेपरवाह
मेरे जज़बात
बिना बात ।

पाल रखा है
अपना शगल
फिरता हूँ लेकर
घायल जज़बात
बिना साथ ।

रास्ता
शेष नहीं कोई
इसके शिवा
पीढ़ियों की
मिली सौगात ।

संसाधनों के स्वामी
शौक का सगुन
बाँट रहे हैं अनवरत
हमारा हिस्सा
सिर्फ आघात ।


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

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