रौंद रहे हैं हर दिन
समय और जगह से
बेपरवाह
मेरे जज़बात
बिना बात ।
पाल रखा है
अपना शगल
फिरता हूँ लेकर
घायल जज़बात
बिना साथ ।
रास्ता
शेष नहीं कोई
इसके शिवा
पीढ़ियों की
मिली सौगात ।
संसाधनों के स्वामी
शौक का सगुन
बाँट रहे हैं अनवरत
हमारा हिस्सा
सिर्फ आघात ।
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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