Sunday 7 August 2016

आन्हर घुमची

आन्हर घुमची
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घेंटा मिमोरत
तोड़त - जोड़त
आपन –आपन गावन
अपने अभिनन्दन
समझवनी के बेसुरा सुर
बिना साज के
संगीत साधना .

झाड़ झंखाड़ से भरल
उबड़ खाबड़ बंजर जमीन
ओकर करेजा फारत
फेरु निकसत
कटइली झाड़
लरछे-लरछे लटकल पाकल
लाल टहक घुमची
अपने गुमाने आन्हर
दगहिल घुमची .

देखलो पर
अनदेखी करत
अनासे शान बघारत
बरियारी आँख देखावत
अनेरे तिकवत
बिखियायिल मुसुकी मारत
औंधे मुँह
धूरी में सउनाइल धुमची


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी  


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