दिन
अछते जब लुगरी फाटल
तब-पुछी
ओकरा के आँटल
गेस्टहाउस
वाली गोरिया हौ।
भइल
आज गठजोरिया हौ॥
कवन
जमाना आय गइल
खरवासें
गाँठ जोराय गइल
मंगल
गाईं हथजोरिया हौ।
भइल
आज गठजोरिया हौ॥
भनमतिया
के कुनबा लेखा
जुटल
बाटें सन तनि देखा
मठ
नाही घर फोरिया हौ।
भइल
आज गठजोरिया हौ॥
पकड़ी
दम्मा दमभर खोखी
छत्तीस
देखा तिरसठ होखी
मुँहझउसन
के खोरिया हौ।
भइल
आज गठजोरिया हौ॥
अनगढ़
दुवरे कोल-भकोल
छठिये होखे लागल मोल
बरही
बन्हाइल बोरिया हौ।
भइल
आज गठजोरिया हौ॥
तू-तू,
मैं-मैं, तोरब-फोरब
पहिले
त घर-बार अगोरब
भर
मुँह गारी कै लोरिया हौ।
भइल
आज गठजोरिया हौ॥
· जयशंकर
प्रसाद द्विवेदी
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