बुआ बबुआ सभै क़हत हौ
पपुआ गाई होरी में।
रटल रटावल घीसल पीटल
उहै सुनाई होरी में ॥
सैफई महोत्सव देख-देख के
डूबल लुटिया होरी में ।
हाथी बइठल पंचर
सइकिल
खड़ी खटिया होरी में ॥
भरल तिजोरी देंवका चाटे
पचरा गाईं होरी में
॥
ई वी एम के अब दिया
देखाईं
लाज बचाईं होरी में
॥
गूंगवा बोलल ढेर दिनन में
फूल चढ़ाईं होरी में
।
मंदिर मंदिर माथा टेकस
पास कराई होरी में ।
उड़नखटोला फाटल कुरता
चौताल बजाईं होरी में
।
जनेव डारि के कुरता पर
भौकाल बनाईं होरी में
॥
भांग घोंट के मातल काशी
धुनी रमाईं होरी में
।
साँझ अवध के सुबहे बनारस
ठेंग देखाई होरी में॥
ताक–झाँक के लदल जमाना
इहो बताईं होरी में ।
रोमियो समझ नवाबी नगरी
तहजीब सिखाई होरी में
॥
पढ़ल उरुवा अनपढ़ मंत्री
इहो बताई होरी में
।
धरम जाति के फइलल जहर
उहो मेटाईं होरी में
।
लिख लोढ़ा पढ़ पाथर के हौ
मत बतलाईं होरी में
॥
सभ केहु इहवाँ आपन बाटे
गरे लगाईं होरी में
॥
· जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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