Friday 9 October 2015

: काशी घायल है :


कल कल बहती पतित पावनी
घाटों पर अविरल मंत्रोचार  ।
अल्हड़ता जिसके रग रग मे
फक्कड़पन का एकाधिकार ।
जहां आस्था का संचार , काशी घायल है ॥

अनबुझी अग्नि मणिकर्णिका की
उत्प्लावित गंगा जामुनी तहजीब ।
अर्चन - पूजन , घंटा - घड़ियाल
गुंजित अजान , विस्मृत अजीज ।
जहां बसते ‘शंकर’ सपरिवार , काशी घायल है ॥

लीलाओं का मंचन, स्फूर्त स्पंदन
मौत भी उत्सव सी यात्रा लाती  ।
आस्था पर यहाँ बर्बर तांडव
संतो बटुकों का रुदन,दरकती छाती ।
अनुचित इनका तिरस्कार , काशी घायल है ॥

चिड़ियों की चहक भी स्तंभित  
क्यों ट्वीटर खामोस पड़ गया ?
नही बुझ रही सुलगती चिंगारी
पी एम ओ पे ताला जड़ गया ?
थम नहीं पा रही चीख पुकार , काशी घायल है ॥

गुमसुदा हुई माँ गंगा की कसमें
बेटा क्यों  श्री  मुख छुपा रहा ।
कर्तव्यों की इति - श्री समझें ,
या स्वं की संस्कृति मिटा रहा ।
जहां बसता कबीर का प्यार , काशी घायल है ॥

प्रशासन संज्ञा शून्य हुआ क्यों ?
अमन चैन विक्षिन्न हुआ क्यों ?
अवमानना की अतिस्योक्ति मे
यह बर्बर लाठीचार्ज हुआ क्यों ?
संवेदनाहीन विद्वत संसार , काशी घायल है ॥

मत लाँघो मानवता की लकीर
कल फकीर थे, हो अब भी फकीर ।
नमन करो, आओ, लो आशीर्वाद
या झाँको अपना कलुषित जमीर ।
मूर्ति विसर्जन मात्र संस्कार , काशी घायल है ॥


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

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