कइसन बहल बेयार सउसे
ओठ झुराइल बा ।
ढहल जाता डडवारी मनई
ओमे पिसाइल बा ॥
छूछ भइल अपनन के थाती
दुबक रहल बा अब उतपाती
धनियाँ के हेरीं अब कहवाँ
जोन्ही
बदरे सऊनाइल बा ॥
मान मिलल माटी मे
साँच घेराइल टाटी मे
पिछवारे क सांकल टूटल
तोहमत सीरे घहराइल बा ॥
परछाहीं के साथ छुटल
भक्ति भाव के भान घुटल
टभके लागल देह पीर मे
कइसन
बीया अंखुआइल बा ॥
जमल लमेरा खेते खेत
करब निराई फेंकब रेत
पसरे नाही देबे एकरा
कूल्हे
रँग चिनहाइल बा ॥
हमरे थरिया मे खात रहल
भर
जिनगी के साथ रहल
न जानी कवना कोल्हू मे
बझल आउर अंइठाइल बा ॥
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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