Sunday 6 March 2016

कइसन बहल बेयार

कइसन बहल बेयार सउसे ओठ झुराइल बा ।
ढहल जाता डडवारी मनई ओमे पिसाइल बा ॥  

छूछ भइल अपनन के थाती
दुबक रहल बा अब उतपाती

धनियाँ के हेरीं अब कहवाँ
              जोन्ही बदरे सऊनाइल बा ॥  

मान मिलल माटी मे
साँच घेराइल टाटी मे

पिछवारे क सांकल टूटल
              तोहमत सीरे घहराइल बा ॥

परछाहीं के साथ छुटल
भक्ति भाव के भान घुटल

टभके लागल देह पीर मे
              कइसन बीया अंखुआइल बा ॥  

जमल लमेरा खेते खेत
करब निराई फेंकब रेत

पसरे नाही देबे एकरा
              कूल्हे रँग चिनहाइल बा ॥

हमरे थरिया मे खात रहल
भर  जिनगी के साथ रहल

न जानी कवना कोल्हू मे
              बझल आउर अंइठाइल बा ॥        


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

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