Saturday 5 December 2015

बंदरबाँट


कुछ तीतर को
कुछ बटेर को
बाकी मेरा अहम खा गया ।

कुछ बंदो को
कुछ चंदों को
बाकी पर कुछ रहम आ गया ।

कुछ तोड़ फोड़
कुछ कहासुनी
बाकी पर वाक आउट छा गया ।

कुछ आरक्षण
कुछ संरक्षण
बाकी पर स्टे आ गया ।

कुछ झूठों को
कुछ रूठों को
बाकी तो मीडिया पा गया ।

कुछ लूट को
कुछ छूट को
बाकी को परदेश भा गया ।

कुछ सोने को
कुछ रोने को
बाकी को कुछ याद आ गया ।




·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

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