Saturday 5 December 2015

राजनीति के रोटी


बात इसन गढ़ाइल, न सोहाईल ए बाबा ।

बात सोगहग रहल , ई नईखे पता ।
घटना काहें भइल , बा केकर खता ।

बेमतलब मे मनई पिसाइल, ए बाबा ।

धरम - जात - मजहब क खाका बुनल
बिन प्रयोजन, बिना बात, आका चुनल

नीमन सनेहिया क डोर कटाइल ए बाबा ।

मुहजोरी के फेरु बवंडर उठल ।
बउरपन के कूल्ही रेकड़ टुटल ।

सँवारे क मंतर कुल भुलाइल, ए बाबा ।

केहु पचरा कहल केहु खाली सुनल ।
केहु झनकल , पटकल न केहु गुनल ।

उहवाँ केहु न आपन भेंटाइल ए बाबा ॥

सच्चाई के उहाँ महटियावल गइल ।
कड़ुवाहट के खाली बढ़ावल गइल  ।

निरा राजनीति के रोटी सेंकाइल ए बाबा ॥



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

No comments:

Post a Comment