बात कइसन गढ़ाइल, न सोहाईल ए बाबा ।
बात सोगहग रहल , ई नईखे पता ।
घटना काहें भइल , बा केकर खता ।
बेमतलब मे मनई पिसाइल, ए बाबा ।
धरम - जात - मजहब क खाका बुनल
बिन प्रयोजन, बिना बात, आका चुनल
नीमन सनेहिया क डोर कटाइल ए बाबा ।
मुहजोरी के फेरु बवंडर उठल ।
बउरपन के कूल्ही रेकड़ टुटल ।
सँवारे क मंतर कुल भुलाइल, ए बाबा ।
केहु पचरा कहल केहु खाली सुनल ।
केहु झनकल , पटकल न केहु गुनल ।
उहवाँ केहु न आपन भेंटाइल ए बाबा ॥
सच्चाई के उहाँ महटियावल गइल ।
कड़ुवाहट के खाली बढ़ावल गइल ।
निरा राजनीति के रोटी सेंकाइल ए बाबा ॥
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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