Friday 12 February 2016

बसंत दीदार


मन अगराइल
सरसो फुलाइल
बहे लागल बसंती बयार
मोरा दिल गुलजार
भइलें खुदही से प्यार ।

नाचे मोर रोम रोम
खिलल बा अब व्योम
अमवों मोजराइल बा
भँवरा गुन  गुनाइल
गोरी करेलीं अनंत शृंगार ।

दुअरे चइता गवाइल
कुहूंकत कोइला सुनाइल
अंग अंग महकाइल
पिया मोर बेल्हमाइल
देखत गोरिया निहार ।

बाग बगइचा हरियाइल
हिया हुलसाइल
आइल मदन त्योहार
मचलत बहियाँ क हार 
सखी री ! इहे बसंत दीदार । 



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

No comments:

Post a Comment