Saturday 20 February 2016

समाचार चैनलों की कथा

क्या जमाना आ गयो भाया , जिधर देखो उधर ही महिमा मंडन हो रहा है । कहीं देशद्रोह का तो कहीं विद्रोह का , जिसे देखो वही अपनी दुकान सजा के बैठ गया । जहां कभी मक्खियाँ भी नहीं भिनभिनाती थीं वो भी अपने अपने प्रॉडक्ट बेचने निकल पड़े हैं । वाह रे लोकतन्त्र , ये तेरा कैसा स्वरूप है । आमजन तो दिग्भ्रमित हो गया दीख रहा है , किसे सच माने किसे गलत । दोनों ही अपने को सत्यवादी हरिश्चंद्र की औलाद साबित करने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं । देश के मान सम्मान की तो फिक्र ही नहीं है , कुछ भी बोलो यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता जो है । जिसकी कहीं पूछ नहीं होगी वो तो पक्का आपके पीछे खड़ा हो लेगा और फिर तो आपकी चाँदी ही चाँदी है । बन गए बैठे बैठाये कर्णधार । न हर्रे लगी ना ही फिटकरी रंग चोखा ही चोखा ।
                                         समाचार चैनलों की कथा ही निराली है , किसी एक समाचार को 2-3 समाचार चैनलों पर देख लीजिये , आप दिग्भ्रमित हुये बगैर रह ही नहीं सकते । उसके बाद तो स्वतः आप अपने बाल नोचते दिखाई पड़ेंगे । इन चैनलों ने तो कार्टून चैनल की उपयोगिता ही समाप्त कर दी , जिसे देखकर कभी बच्चे अपने मन बहला लिया करते थे । कोई राष्ट्रीय गीत को जोरदार तरीके से अपमान जनक बताता देख जाएगा और कोई तीरंगे को ही बेकार बताता मिल जाएगा । फिर तो जिसने इस देश के लिए अपना जीवन दाँव पर लगा रखा हो , उसकी आंखे तो अश्रुपूरित हुये बगैर रह ही नहीं सकती । ऐसे मे रिटायर्ड जनरल का भावुक हो जाना अति स्वाभाविक ही है । कुछ लोग तो इस ताक मे बैठे हैं की उस जनरल साहब को ही संघी बता दें । या फिर उन्हे किसी का एजेंट करार दे दें ।
                               

              सुनते चले आ रहे हैं कि मीडिया लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ है । इसमे कितना सच है यह एक विचारणीय प्रश्न बन चुका है । अब तो यह प्रतीत होता है कि यह स्तम्भ पूर्ण रुपेण रुग्ण हो चुका है । इसे समुचित उपचार कि आवश्यकता है । इसके लिए भी लगता है कोई ट्रायल या आयोग कि जरूरत पड़े अभी तो कहा नहीं जा सकता । लेकिन आज कि यह एक अनिवार्य आवश्यकता भी है कि इसका समुचित उपचार किया जाय , चाहे इसके लिए कोई भी कदम उठाना पड़े । कभी कभी तो लगता है कि किसी भी कर्मठ ब्यक्ति को मीडिया पचा भी नहीं पाता । अतएव इसकी पाचन क्रिया भी संदेह के घेरे मे है ।
                                  अब एक अजीब चलन आ चुका है , जिस किसी भी मामले कि भद्द पीटनी हो , इन समाचार चैनलो से संपर्क हर कोई साध लेता है । ये गंभीर से गंभीर मामले की हवा निकालने मे बड़े ही सिद्ध हस्त हैं । JNU प्रकरण इसका ताजा तरीन उदाहरण है । गला फाड़ प्रतियोगिता के स्वयंभू विजेता इन चैनलो को देश का राष्ट्रीय ध्वज ही असहनीय लगता है । एक आम भारतीय की सोच तो यह कहती है कि इस प्रकार के चैनलों की भारतीय समाज मे कोई उपयोगिता ही नहीं है । अस्तु ! भ्रष्टाचार की इन तथाकथित दुकानों को बंद कर देना ही उचित रहेगा ।

·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी   

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