भले आदमी की भलाई न
देखी
कभी जानकर वो कलाई न
देखी ।
खुले आम मुझको गलत बोलते हैं
कभी जिनकी मैंने लुगाई न देखी ।
आरोपी बना जिस खजाने का हूँ मै
उसकी अभी तक चिनाई न देखी ।
अकेला था मिलने नहीं कोई आया
जमाने की ऐसी रुसवाई न देखी ।
कांटे ही मिले मुझको हर डगर मे
कहीं भी गमो की दवाई न देखी ।
निपटता भला कैसे उन जालिमो से
जिन आखों मे दया की छाईं न देखी ।
बहुत ही निपुण हैं अपनी कला मे
उन हाथो के जैसी सफाई न देखी ।
जकड़ा गया जिस भी पाश मे मै
उससे किसी की रिहाई न देखी ॥
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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