का जमाना आ गयो भाया , बेशर्मो की तो लाटरी लग गयी है । कहीं भी राजनीति करने से बाज नहीं आते ।
जिनके लक्षण परिपक्वता से छत्तीस का रिस्ता रखते हों , अब वो
भी अपनी दुंदुभि बजा रहे हैं । भाषाई अस्मिता की तो धज्जियां ऐसे उड़ा रहे हैं जैसे
कि बंद पिंजरे से पक्षी को आजाद किया जाता है । शब्द चयन और सम्बोधन की तो लंका
लगा दी । न जाने किस दिशा मे समाज को गतिशील करना चाह रहे हैं । कहीं भी कुछ भी
बोल देना इनकी दिनचर्या मे शुमार हो चुका है । इन जैसे लोगों के लिए प्रयुक्त होने
वाला शब्द ‘राजनेता’ अब खुद को ही
शर्मशार महसूस करने लगा है । कुछ भी बोलकर यू टर्न ले लेना इनकी दिनचर्या का
प्रमुख अंग हो चुका है ।
सामाजिक ताने बाने की कैसे
धज्जियां उड़ाई जाती हैं , इसका ज्वलंत उदाहरण हरियाणा मे अभी
देखने को मिला । हरियाणा की एक समृद्ध जाति समूह द्वारा आरक्षण की मांग को लेकर
सरकारी संपदा का इतना विद्रुप तरीके से तहस नहस किया जाना निश्चित रूप से निंदनीय
है । आगजनी का खेल उन लोगों ने ऐसे खेला , जैसे बरसात के बाद
सड़े पुआल के ढेर मे आग लगाई जाती है । कुछ तथाकथित नेताओं के शह ने हरियाणा जैसे
राज्य को करीब 34000 करोड़ की क्षति पहुंचाई । वाह रे आरक्षण मांगने वालों , तुम्हारी आंखो पर कौन सा पर्दा पड़ गया है ? दया आती
है तुम्हारी अक्ल पर और कृत्य पर तो घिन्न आती है । इन लोगों ने तो अपनी समृद्ध
संस्कृति के इज्जत की धज्जियां ही बेखर दी । कैसी होड़ मची है , जिसे
देखो वही पिछड़ा बनने को उतारू है ।
सांसद
अनुराग ठाकुर और स्मृति ईरानी द्वारा उठाए गए प्रश्नो और दिये गए साक्ष्यों ने जो
चित्र प्रस्तुत किया , उससे तो कांग्रेस और वामपंथियों की
पूरी की पूरी कलई खोलकर रख दी है । अपने खोते राजनीतिक धरातल के लिए संघर्ष करती
कांग्रेस और कितना पतन की ओर जाएगी , इसका मूल्यांकन बेमानी
हो चला है । वामपंथ , जो अपना अंतिम चरण जी रहा है , उसने जे एन यू मे तो हद ही कर दी । अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के
नाम पर किसका गुणगान और महिमा मंडन किया जा रहा है , इसका
निर्धारण ये पार्टियां करें या न करें , जनता अवश्य करेगी ।
करना भी चाहिए , अन्यथा इन जयचंदों को तो देश बेचने मे भी
शर्म नहीं आने वाली । ये पार्टियां अपना कैसा और कौन सा चरित्र प्रस्तुत कर रही
हैं , इनका शायद
इनको भान भी नहीं है । लोकतन्त्र के सर्वोच्च संस्थानो का सम्मान भी अब इन्हे
नागवार लग रहा है ।
दलित राजनीति की झंडाबरदार का हैदराबाद
विश्व विद्यालय की जांच समिति द्वारा प्रस्तुत तथ्यों की अनदेखी करना , उनके अंदर ब्याप्त भय को ही इंगित कर रहा था । शायद आसन्न चुनाओं के
मद्दे नजर वामपंथी भी अंबेडकर के पथावलंबी बनने से नहीं झिझक रहे । दलित राजनीति
के ये तथाकथित लोग पूंजीवाद के चरम शिखर पर बैठ कर वास्तविक दलितों को सदा से
नुकसान पहुंचाते आ रहे हैं । ये झंडाबरदार लोग सिर्फ अपना ही विकास करना जानते हैं
और कर भी रहे हैं । अगर हम जागृत नहीं हुये तो ये नव जमींदार शायद जघन्यता की सारी
हदें पार कर जाएंगे ।
संसद मे लगातार हो रहे
बेतुके बहिस्कार आम लोगों की आशाओं पर कुठाराघात हैं । विकास के रास्ते को लगातार
अवरुद्ध किया जाना देश की जनता के साथ पूर्ण रुपेण अन्याय है । लोकतन्त्र के इस
पावन मंदिर मे इस तरह का आचरण चिंतनीय है और शर्मनाक भी । संसद के समय का सदुपयोग
होना ही चाहिए , यही इस देश के प्रत्येक नागरिक की इच्छा है और
संसद की सच्ची उपयोगिता भी शायद यही है ।
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जयशंकर
प्रसाद द्विवेदी
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