Friday 13 November 2015

भाषा बम


केकर के दुलरुवा बाटे  ,
सुनल जाई गुनल जाई ।
नीमन लागी त ठीके बा ,
नाही त भर मन धुनल जाई ॥

पाकल खेत आ बनल लईकी,
दोसरा भरोष न छोडल जाई ।
जे भी संगे आ खाडियाई ,
मय बिरोध पर तोड़ल जाई ॥

माहौल बने त बन जायेदा
भाषा बम भी फोड़ल जाई ।
बिन पेनी के लोटा नीयन ,
केहु क चदरी ओढ़ल जाई ॥

साम दाम आ दंड भेद पर ,
नवका राग बजावल  जाई ।
धरम जात के बात नहीं कुछ ,
सुतल भाग जगावल जाई ॥

कुरसी चाही, केनियों मिले ,
पार्टीन के हिलावल जाई ।
पाँच साल तक आँख मूद के ,
देश के बिलवावल जाई ॥



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

No comments:

Post a Comment