लय छंद से तर बतर
समानान्तर हासिए पर
उदास शब्द
आभाष देता एकांत
अचानक शांत हुये तूफान का ।
अनवरत अविचल
प्रतीक्षारत सभ्यता की उड़ान
अचानक मिली कामयाबी
पहचान की जमीन से दूर
जमी बर्फ का पिघलना
एहसास देता समाज
अंधेपन का ॥
भावनाओं के उठते ज्वार
अतिरंजित परिकल्पना
वजूद की जद्दो जहद
सिर्फ दिखावा है
दोस्ती का पैगाम
अल्फ़ाजों तक ही
संकुचित ॥
पीड़ा
कैसी है भला
कहीं मरहम का भी काम करती है
नकली रुदन
थोथी बयानवाजी
पुरस्कारों का उलट फेर
कालजयी होने का दंभ
यह कौन सा स्तम्भ ॥
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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