सच ही उन तड़प की
रातों मे
मेरी नींद खो गयी ।
जब से उन्हे देखा है
बस उनकी ही यादें हैं
तरुणाई के अलमस्त आलम मे मिलन
उनका यौवन और उनकी बातों मे
मेरी नींद खो गयी ।
कसमकस से भरी
मुस्कुराहट
मेरी चाहत बन गयी है
थिरकनों से भरे चूँदर के बीच
चंचल चितवन और उनकी जज़्बातों मे
मेरी नींद खो गयी ।
फागुनी छेड़छाड़ से भरी हसरत
पवन को भी झकझोर गयी है
अरुणिम अधरों से टपकते मद पराग
दिल भ्रमर का गुंजन और उनसे मुलाकातों मे
मेरी नींद खो गयी ।
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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