Saturday 7 November 2015

भेड़चाल


कुछ नया शौक
कुछ नया प्रचलन
अभिव्यक्ति के प्रायोजित नए नए ठेकेदार
देश और समाज की कराते किरकिरी
कुछ बौखलाए से
किसी से अभिप्रेरित ।

एका एक जागी चेतना
जो सो रही थी वर्षों से
निरापद , निर्विकार सी
पहले की घटनाएँ
दंगे , हत्याओं का धारा प्रवाह
अपने ही घर से विस्थापितों का दमन चक्र से भी
नहीं होती आत्मा उद्वेलित
नहीं जगता आत्मज्ञान
वो निर्देशित ही तो हैं ।

खुद का कृत्य
परम पावन लगता है
भले ही गुजरा हो
लाशों को रौंदकर
आज  उनकी चहल कदमी
उन्हे शर्मशार भी नहीं करती
उनकी ये बौखलाहट
उनके कुछ खोने का दर्द भर है ।

ज्ञान विज्ञान साहित्य
होते हैं समाज के दर्पण
देते रहे हैं समाज को दिशा ज्ञान
लेकिन आज
दरबारी दर्पण की प्रतीति
स्वामिभक्ति का प्रदर्शन
या कुछ इससे इतर
भेड़चाल ।

भोंदू बक्से की निरर्थक बहसें
लिपे पुते से चेहरे
तथाकथित पत्रकार
बायस विश्लेषक
स्वरचित समाचार
झूठ को बार बार
सच साबित करे की कोशिश
लकवाग्रस्त ।

चंद लोगों का दिग्भ्रमित समूह
बरगलाने निकल पड़ा है
देश धर्म आत्म सम्मान
ज्ञान से विरक्त
आत्मीयता को विषाक्त करने 
धन की लोलुपता मे
सब कुछ न्योछावर करने
बुद्धिजीवी मूर्ख या मूर्ख बुद्धिजीवी ।



·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

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