Friday 6 March 2015

गाँव हमरे !

आपसी सनेह क सिंगार गाँव  हमरे ।।
उड़े लागल रंग गुलाल गाँव हमरे॥

राते आँखी  मे न नींद,जब से आइल ब बसंत ।
दिने दिलवा बेचैन , याद आंवे हमरो  कंत ।
साँसो मे होला मनुहार , गाँव हमरे ॥ उड़े लागल...

बढ़ल मस्ती के ज़ोर ,फुलल सरसों चहुओर ।
मिटल मनवा के मैल, भइल होलिया के शोर।
रून झुन बजेले पायल पाँव हमरे ।। उड़े लागल...

मन मे एक ही ब आशा , कहीं गूँजे किलकारी ।
उठल संसद मे ब शोर , कहीं धरना के बारी ।
कहिया पड़ीहैं सुशासन के पाँव, गाँव हमरे ॥ उड़े लागल...

करे सभे केहु प्रयास , होई देश के विकास ।
फली फुली हर समाज ,बाटे जन जन के आस।
तभिए आई अच्छे दिनन के छाँव , गाँव हमरे ॥ उड़े लागल...


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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