आपसी सनेह क सिंगार गाँव हमरे ।।
उड़े लागल रंग आ गुलाल गाँव हमरे॥
राते
आँखी मे न नींद,जब से आइल
ब बसंत ।
दिने
दिलवा बेचैन , याद आंवे हमरो कंत ।
साँसो मे होला मनुहार , गाँव हमरे ॥ उड़े लागल...
बढ़ल
मस्ती के ज़ोर ,फुलल सरसों चहुओर ।
मिटल
मनवा के मैल, भइल होलिया के शोर।
रून
झुन बजेले पायल पाँव हमरे ।। उड़े लागल...
मन
मे एक ही ब आशा , कहीं गूँजे किलकारी ।
उठल
संसद मे ब शोर , कहीं धरना के बारी ।
कहिया
पड़ीहैं सुशासन के पाँव, गाँव हमरे ॥ उड़े लागल...
करे
सभे केहु प्रयास , होई देश के विकास ।
फली
फुली हर समाज ,बाटे जन जन के आस।
तभिए
आई अच्छे दिनन के छाँव , गाँव हमरे ॥ उड़े लागल...
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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