Friday 6 March 2015

: बेवफा न बन सके :

हमारी बेसुमार बेकरारी
का सबूत
तनहाई मे आ रही
तेरी यादें ही तो हैं
शायद मेरे लिए
तिनका के सहारे सा ।

टूटन ही तो मैंने
देखा है अब तक
चाहकर भी
अनचाहे भी
पता नहीं उन्हे कैसा लगता है
मेरा यह सब कुछ ।

स्वप्नों मे भी
उनकी बेवफाई
क्या मुझे सुखकर लगती है ?
नहीं , कत्तयी नहीं
फिर भी वे
उसमे भी साथ नहीं देते ।

काश ! वे सिर्फ
बेवफा ही बनकर रहते
काफी कुछ ठीक होता
लेकिन
वे बेवफा भी न बन सके
हमदर्द क्या बन पाते ?

वे प्यार की बातें
उनके जलवे
न तो भुलाए ही जाते हैं
न ही याद रह पाते हैं
अच्छी तरह ।

·          जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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