समय के रथ की सवारी
दोनों ही अव्यवस्थित कर जाती हैं
समाज और परिवार
व्यक्ति और उसका जीवन
चिंतन व सोच
यहाँ तक कि उसका रहन – सहन भी ।
पहचान और सम्मान भी
धूल – धूसरित हो जाते हैं
दिल और दिमाग कि मर – धाड़
सार्थक सोच कि दिशा
विस्मृत कर जाती है
लेन देन कि अवधारणा ।
अपने पराए का दोष – गुण
अपनत्व कि परिभाषा
आशा – दिलाशा
सब अछूत हो जाते हैं
निकट्स्थ को भी दूर कर जाती है
लेन देन कि अवधारणा ।।
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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