कहीं कुछ चटक गया,फूटा कुछ टूटा कुछ
बनती बिगड़ती सँवरती सी सायरी ।।
राह
से भटक गयी राजनीति आज की ,
सब
कुछ बोल गयी , करामाती डायरी ॥
उग्रवादी
, देशवादी , धर्म - निरपेक्षवादी,
सभी
एक लाइन मे जाने कब से खड़े हैं ।
जेबी
सी बी आई पर जब से लताड़ पड़ी
कच्चा
चिट्ठा खोल गयी , करामाती डायरी ॥
देश
बेची कांग्रेस , बची नहीं भाजपा,
जनतादल
वाले पशु पालने मे बड़े हैं ।
बोला
एक ‘तांत्रिक’ इसारों ही इसारों मे
मेरे
को भी तोल गयी, करामाती डायरी ॥
जब
राजे रजवाड़े भी हवाला के हवाले हुये
बड़े
– छोटे सभी इसी मिट्टी मे पले हैं ।
आईयस
,पीसीयस जाने कितने बुद्धिजीवी
सबको
टटोल गयी , करामाती डायरी ।।
म्यूजियम
बनाओ अब डायरियों के वास्ते
सारे
ही घोटाले ‘उस’ नायक ने तले हैं ।
अबकी
चुनाव भी बेसरमी की हद है ,
मर्यादित
चुनाव – चिन्ह, करामाती डायरी॥
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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