नयनन मे रतियन की
चढ़ी खुमारी भी
दिल मे प्यार भरी बतियन की
हो चुकी बीमारी भी
उनके सर चढ़कर
बोलती है ।
उनकी शोख हंसी से
खिलने लगते हैं रतनार
उनके हर अंगो मे
उतार आई मादकता
इंतजार मे है उस लमहे के
जब मिलेगा उन्हे
‘
बाहों का हार ‘
।
दोनों ओर उठ रही झंझावत भी
शायद एक सी है
उनके दिले कैनवास भी
एक ही चित्र से चित्रित हैं
वही दर्शाते हैं
एक तनहा प्यार ।
वह तनहा प्यार
समेटे है अपने में
दर्दे सिहरन भरी मिठास
शायद हास और परिहास भी
लेकिन
केवल दर्द को ही शीने से लगाए
जी रहे हैं दोनों ।
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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