Saturday 7 March 2015

: बुरा लगा :

समझा, जब  से  सच की पीड़ा ,
      बुरा लगा , लगने दो ।।

उजड़े नीड़ , बसंत का पतझड़
नीरीह घटा की उमड़ घुमड़
देखा  जब  से  कृषक की पीड़ा,
      बुरा लगा , लगने दो ।।

छुई – मुई ,  डरती  सकुचती
कठिन राह , पर चलती जाती
सोचा,  जब  नारी  की  पीड़ा ,
      बुरा लगा , लगने दो ।।

सब अलमस्त लुटेरे जग मे
जहर भरा उनके रग रग मे
जाना , जब से राजनीति की क्रीड़ा,
      बुरा लगा , लगने दो ।।

संप्रदाय का डर है किसको
सत्ता लोलुप , अभिमान है जिसको
बुत सी बन गयी , मन की पीड़ा,
      बुरा लगा , लगने दो ।।

घायल पड़ा बीच सड़क पर
देखा , पूछा , निकल गए ।
मानवता की  मृत्यु है यह
पत्थर को आँसू निकल गए ।
कहते  हुये  सब  सुने  गए
      बुरा लगा , लगने दो ।।  


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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