चाटुकारिता के प्रहरी तुम,
राजनीति के केजरीवाल ।
हर
बार नई नौटंकी,
सबको
मालूम सबका हाल।
जब
भी संरचना की बात चली ,
सबसे
मुखर तुम्ही तो थे ।
कार्यान्वयन
की राहों मे,
बृहत्तम
ब्रेकर तुम्ही तो थे।
शब्द
जाल के नए प्रणेता ,
विघटन
के तुम खेवनहार ।
जिसने
चाहा ,जब भी चाहा
नर्तकियों
सा देखा व्यवहार ।
अंधकार
के तुम हो स्वामी,
विशिष्टता
के अंतर्यामी ।
सहचर्य
से छत्तीस का रिस्ता
व्यतिरेक
के सहज सुनामी।
अशिष्टता
के शिद्धि प्रदाता,
शांति
मे तुम पाकिस्तान
।
कब
कब किसको क्या बताऊँ ,
फिर
भी मेरा देश
महान ।
कौन
है अपना , कौन पराया ,
निश्चय
, मै तो जान न पाया ।
अब
तो देख , समझ के बोलो ,
किसका
कब , और कौन है आया ॥
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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